27 रजब - अमाल और दुआ (दिन और रात) - रसूल के मबस (आधिकारिक नियुक्ति) और मेराज का दिन
मेराज पर किताब (मुल्ला फैज़ कशानी - अंग्रेजी) | मेराज पर हदीस क़ुदसी PDF | मेराज - जिस्मानी स्वर्गारोहण
अंग्रेजी में अमाल डाउनलोड करें (mubin.org) | PDF पेज | PPT डाउनलोड
ज़्यारते ईमाम हुसैन (अ:स) पढ़ें नया | ज़्यारत हज़रत अली (अ:स) नया
27 रजब की रात |
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
यह बड़ी मुताबर्रक रातों में से है क्योंकि यह रसूल अल्लाह (स:अ:व:व) के मोब'अस (तबलीग़ पर मामूर होने) की रात है और ईस रात के कुछ ख़ास अमाल हैं 1 मिस्बाह में शेख़ ने ईमाम अबू जाफ़र जवाद (अ:स) से नक़ल किया है की फ़रमाया : रजब महीने में एक रात हे की ईन सब चीज़ों से बेहतर है जिन पर सूरज चमकता है और वो 27 रजब की रात है की जिसकी सुबह रसूले आज़म (स:अ:व:व) मब'उस ब रिसालत हुए! हमारे पैरोकारों में जो ईस रात अमल करेगा तो इसको 60 साल के अमल का सवाब हासिल होगा! मैंने अर्ज़ किया, "ईस रात का अमल क्या है?" आप (अ:स) ने फ़रमाया : नमाज़े ईशा के बद सो जाए और फिर आधी रात से पहले उठ कर 12 रक्'अत नमाज़ 2-2 रक्'अत करके पढ़े और हर रक्'अत में सुराः अल-हम्द के बाद क़ुरान की आखरी मुफ़स्सिल सूरतों (सुराः मोहम्मद से सुराः नास) में से कोई एक सुराः पढ़े! नमाज़ का सलाम देने के बाद यह सारी सुराः पढ़े :
और ईन सब क़ो पढ़ने के बाद यह दुआ पढ़े : |
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
हम्द है ईस ख़ुदा के लिये जिस ने किसी क़ो अपना बेटा नहीं बनाया और न कोई इसकी हुकूमत में इसका शरीक है और न वो कमज़ोर है के कोई इसका हामी हो और तुम इसकी बड़ाई खूब ब्यान करो, ऐ माबूद! मै सवाल करता हूँ तुझ से अर्श पर तेरे इज़्ज़त के मक़ाम के वसते से और ईस इन्तेहाई रहमत के वास्ते से जो तेरे क़ुरान में है और वास्ता तेरे नाम का जो बहुत बड़ा, बहुत बड़ा और बहुत ही बड़ा है , ब वास्ता तेरे ज़िक्र के जो बुलंद'तर, बुलंद'तर और बहुत बुलंद'तर है और ब वास्ता तेरे कामिल कलमात के सवाली हूँ के तू हज़रत मोहम्मद और इनकी आल (अ:स) पर रहमत फ़रमा और मुझ से वो सुलूक फ़रमा जो तेरे शायाने शान है |
अलहम्दु लील'लाहिल लज़ी लम यात्ताखिज़' वालादन व लम याकुल'लहू शरीकुन फ़िल मुल्की व लम याकुल'लहू शरीकुन फ़िल मुल्की व लम याकुल'लहू वली'युन मिनज़'ज़ुल्ली व कब'बिरहु तक्बीरा, अल्लाहुम्मा इन्नी अस-अलुका बीमा-आकीदी इज्ज़िका अ'अला अर्कानी अर्शिका व मुन्तहर रहमती मिन किताबेका व बिस्मिकल आ'-ज़मील आ'-ज़मील आ'-ज़म व ज़िक'रिकल आ'-लल आ'-लल आ'-ला व बी-कलिमातिकत ताम्मातिका अन तू'सल्लिया अला मुहम्मदीन व आलीही व अन तफ़-अला बीमा अन्ता अहलुह |
|
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
इसके बाद जो दुआ चाहे पढ़ें! ईस रात में ग़ुस्ल करना मुस्तहब है, और इसकी शब् में 15 रजब की रात में पढ़ी जाने वाली नमाज़ भी बजा लाये2. अमीरुल मोमिनीन (अ:स) की ज़्यारत पढ़ना के जो ईस रात के तमाम अमाल से बेहतर व अफ़ज़ल है, ईस रात में ईमाम (अ:स) की तीन ज्यारातें हैं जिन का ज़िक्र बाद में आएगा! ख़्याल रहे की मशहूर सुन्नी आलिम अबू अब्दुल्लाह मोहम्मद इब्ने बतूता ने 600 साल पहले मक्का मोअज़'ज़मा और नजफ़'अशरफ़ का सफ़र किया और अमीरुल मोमिनीन के रौज़े पर हाज़िरी दी, इन्होंने अपने सफ़र नामा (रहला इब्ने बतूता) में मक्का से नजफ़-अशरफ़ में दाख़िल होने के बाद जो अमीरु मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब (अ:स) के रौज़े का ज़िक्र करते हुए एक वाक़या तहरीर किया है की ईस शहर के रहने वाले सब के सब राफ़ज़ी हैं, और ईस रौज़े से बहुत से करामत ज़हूर में आती हैं, यह लोग लैलातुल महया (जागने की रात) जो 27 रजब की शब् है, इसमें कूफ़ा, बसरा ख़ुरासान, और फारस व रोम वगैरा से हर बीमार, मफ्लूज, शल-शुदा, और ज़मीन्गीर क़ो यहाँ लाते हैं, जिनकी गिनती लगभग 30-40 होती है, वो लोग नमाज़े ईशा के बाद ईन अपाहिजों क़ो अमीरुल मोमिनीन (अ:स) की ज़रीहे-मुबारक पर ले जाते हैं जहां बहुत से लोग इनके इर्द गिर्द जमा हो जाते हैं, इनमे से कुछ नमाज़, तिलावत और ज़िक्र में मशगूल होते हैं और कुछ सिर्फ़ ईन बीमारों क़ो ही देखते रहते हैं की वो कब तंदुरुस्त होकर उठ खड़े होंगे! जब आधी या दो तिहाई रात गुज़र जाती है तो जो मफ्लूज और ज़मीन्गीर हरकत भी न कर सकते थे वो ईस हालत में उठते हैं की इन्हें कोई बीमारी नहीं होती, और कलमा तैय्येबा "ला इलाहा इलल'लाह, अलीयुन वली'उल्लाह (لااِلہ اِلاّ الله محمّد رّسوْل اللهِ علِیّ ولِیّ اللهِ ) पढ़ते हुए वहाँ से रवाना हो जाते हैं! यह मशहूर करामत है, लेकिन मै खुद उस रात वहाँ मौजूद न था, लेकिन नेक और भरोसे वाले लोगों ने मुझे यह अपनी ज़बानी बताया है, इसी कारणवश मैंने अमीरुल मोमिनीन (अ:स) के रौज़ा-ए-अक़दस के क़रीब मौजूद मदरसा में तीन आदमी देखे जो अपाहिज ज़मीन पर पड़े थे इनमें से एक ईस'फ़हान का दूसरा ख़ुरासान का और तीसरा रोम से था! मैंने ईन से पूछा, " तुम लोग तंदुरुस्त क्यों नहीं हुए?" वो कहने लगे के, "हम 27 रजब क़ो यहाँ नहीं पहुँच सके, इसलिए अगले 27 रजब तक हम यहीं रहेंगे ताकि हमें शिफ़ा हासिल हो और फिर हम वापस जायेंगे" आख़िर में इब्ने बतूता कहते हैं की ईस रात दूर दराज़ शहरों के लोग ज़्यारत के लिये ईस रौज़े अक़दस पर जमा हो जाते हैं और यहाँ बहुत बड़ा बाज़ार लगता है जो दस दिन तक जमा रहता है! लिखने वाले यह कहते हैं की लोग ईस वाक़ये क़ो अजीब न समझें क्योंकि ईन मशाहिद मौशार्र्फा (शरीफ़ गवाह देने वाले) से इनती करामत ज़ाहिर हुई हैं जिन की गनती नहीं हो सकती! चुनान्चेह शव्वाल के महीने (1343 इसवी)में उम्मत आसी के ज़ामिन ईमाम सामिन यानी अबुल हसन ईमाम अली रज़ा (अ:स) के मशहद-अतहर में तीन मफ्लूज और ज़मीन्गीर औरतें लायी गयीं, जिन के इलाज से डाक्टर और हकीम परेशान हो गए थे! इनको वहाँ से शिफ़ा मिली और वो तंदुरुस्त होकर ईस हरम से वापस गयीं! ईस मशहद-ए-मुबारक के मोएज्ज़ात व करामात के ऐसे गवाह हैं, जैसे आसमान पर सूरज का चमकना, और बद'दुओं के लिये हरम-ए-नजफ़ के दरवाज़े का खुलना हर शक से परे है! ईन औरतों का वाक़ेया ऐसा ज़ाहिर व बाहर था कके जो हकीम/डाक्टर इनके इलाज में कामयाब न हो सके थे इन्होंने माना की हमारा ख़्याल यही था की यह औरतें सेहत नहीं पा सकती हैं, लेकिन इन्हें हरम-ए-मुतःहर से शिफ़ा मिल गयी है, फिर इन्होंने बा'कायेदा यह लिख कर भी दिया! अगर यहाँ जगह की कमी न होती तो और बहुत सारे वाकेयात यहाँ ब्यान किये जाते! हमारे बुज़ुर्ग शेख़ आमली ने अपने क़सीदे में क्या खूब फ़रमाया है : |
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
शेख़ कफ़'अमी ने बलादुल'आमीन में फ़रमाया है की बे'सत की रात (27 रजब की रात) यह दुआ भी पढ़ी जाए ! |
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
फिर सजदे में जाएँ और ईस दुआ क़ो 100 मर्तबा पढ़ें:
जब सजदा पूरा हो जाए तो अपना सर उठायें और पढ़ें :
Sayyid Ibn Tawoos has mentioned that this supplication is recited on the Revelation Day (i.e. the twenty-seventh of Rajab). The Supplication on the Divine Mission Day Mp3Eighth: As is mentioned in ‘Iqbal al-A`mal’ and some manuscripts of ‘Misbah al-Mutahajjid’, it is recommended to recite the following supplication on this day:
this supplication, which is one of the excellent supplications of Rajab, was recited by Imam Musa ibn Ja`far al-Kazim (a.s) on the day when the ruling authorities took him to Baghdad. That day was the twenty-seventh of Rajab Ninth As is mentioned in ‘Iqbal al-A`mal’, it is recommended to recite the following supplication on this day:
Salat given above another format / font :-Shaykh al-tusiy has also reported Abu’l-Qasim Husayn ibn Ruh may Allah have mercy upon him— as saying, “On this day, you may offer a prayer consisting of twelve Rak`ahs at each of which you may recite Surah of al-Fatiiah and any other Surahs. After each couple of Rak`ahs, you may say the following:-
When you accomplish the prayer, you should recite Surahs of al-Fatihah, al-Tawhid, al-Falaq, al-Nas, al-Kafirun, al-Qadr, and ªyat al-Kursiy seven times. You should then repeat the following seven times:
You should then say the following seven times:
After that, you may submit your needs.
|
||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||